Title: Inspirational Story of a Bengaluru Auto Driver: A Heartwarming Conversation Sparked by an IIM-B Jacket A heartwarming conversation between a Bengaluru auto driver and an IIM-B staff member, initiated by the iconic IIM-B jacket, has gone viral on social media. This inspiring news from Bengaluru showcases the positive impact of simple interactions in our daily lives.

परिचय

सोशल मीडिया पर आए दिन अनगिनत कहानियाँ वायरल होती हैं, लेकिन कुछ किस्से ऐसे होते हैं जो लोगों के दिल को गहराई से छू जाते हैं। हाल ही में, बेंगलुरु के एक ऑटो-रिक्शा चालक की कहानी इंटरनेट पर चर्चा का विषय बन गई है। यह कहानी एक साधारण मुलाकात से शुरू हुई, जब एक यात्री ने ड्राइवर को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट बैंगलोर (IIM-B) की जैकेट पहने देखा। इसके बाद हुई बातचीत ने यह साबित कर दिया कि मेहनत, लगन और इंसानियत की कोई सीमा नहीं होती।

IIM-B जैकेट में ऑटो-चालक — जिज्ञासा का कारण

बेंगलुरु में अपनी यात्रा के दौरान, अपूर्वा नाम की एक महिला यात्री ने देखा कि उनका ऑटो-रिक्शा चालक IIM-B की जैकेट पहने हुए है। यह देखकर वह हैरान रह गईं, क्योंकि यह जैकेट आमतौर पर देश के सबसे प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थानों में से एक के छात्रों के पास ही देखने को मिलती है।
जिज्ञासा वश उन्होंने ड्राइवर से बातचीत शुरू की और जो कहानी सामने आई, उसने उन्हें भावुक कर दिया।

दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ — मेस में काम और ऑटो चलाना

ड्राइवर ने बताया कि वह IIM-B के हॉस्टल मेस में फुल-टाइम काम करते हैं। उनकी जिम्मेदारियों में छात्रों को समय पर और गुणवत्तापूर्ण भोजन उपलब्ध कराना शामिल है। छात्रों ने उनकी मेहनत और ईमानदारी को देखते हुए उन्हें यह जैकेट उपहार में दी थी। यह सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि उनके काम के प्रति सम्मान और प्रेम का प्रतीक था।

मेस में काम करने के बावजूद, वह अपने परिवार की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पार्ट-टाइम ऑटो-रिक्शा भी चलाते हैं। यह सुनकर अपूर्वा के मन में उनके प्रति सम्मान और भी बढ़ गया।

सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट

अपूर्वा ने इस प्रेरणादायक मुलाकात को अपने सोशल मीडिया अकाउंट (X, जिसे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था) पर साझा किया। उन्होंने लिखा:

“मेरे ऑटो ड्राइवर ने IIM-B की जैकेट पहनी थी। मैंने उनसे बातचीत की तो पता चला कि वह IIM-B हॉस्टल मेस में काम करते हैं और छात्रों ने उन्हें यह जैकेट गिफ्ट की। ऑटो चलाना उनका पार्ट-टाइम काम है।”

उनका यह पोस्ट देखते ही देखते वायरल हो गया और हजारों यूजर्स ने इस पर प्रतिक्रिया दी।

यूजर्स की प्रतिक्रियाएँ — संवेदनशीलता और सवाल

इस पोस्ट पर आए कमेंट्स में लोगों ने अलग-अलग भावनाएँ व्यक्त कीं।

इन प्रतिक्रियाओं ने सोशल मीडिया पर एक व्यापक बहस को जन्म दिया — क्या उच्च शिक्षा संस्थानों में काम करने वाले सहायक कर्मचारियों को उचित वेतन मिलता है?

IIM-B की प्रतिष्ठा और मानवीय पहलू

IIM-B न केवल भारत बल्कि एशिया के प्रमुख प्रबंधन संस्थानों में से एक है। यहाँ पढ़ने के लिए छात्र लाखों रुपये फीस देते हैं और यह संस्था बेहतरीन फैकल्टी, आधुनिक सुविधाएँ और अंतरराष्ट्रीय स्तर की शिक्षा के लिए जानी जाती है। लेकिन इस घटना ने यह सवाल उठाया कि इतने प्रतिष्ठित संस्थान में भी ग्राउंड स्टाफ को अतिरिक्त काम करने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है?

मेहनत और इंसानियत का सम्मान

ड्राइवर को मिली यह जैकेट भले ही महंगी न हो, लेकिन इसमें छिपा भावनात्मक मूल्य अमूल्य है। छात्रों ने यह उपहार देकर न केवल उनकी मेहनत की सराहना की, बल्कि यह भी दर्शाया कि इंसानियत और सम्मान का कोई पद या पेशा नहीं होता।

बेंगलुरु और ऑटो-रिक्शा ड्राइवर्स की रचनात्मकता

यह पहली बार नहीं है जब बेंगलुरु के ऑटो-चालकों की कहानियाँ वायरल हुई हैं।

यह साबित करता है कि बेंगलुरु के ऑटो-चालक न केवल मेहनती हैं, बल्कि तकनीक और रचनात्मकता में भी आगे हैं।

आर्थिक असमानता पर सवाल

इस घटना ने एक बार फिर से यह मुद्दा सामने ला दिया कि देश में कई लोग, चाहे वे प्रतिष्ठित संस्थानों में ही क्यों न काम कर रहे हों, अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के लिए अतिरिक्त काम करने को मजबूर हैं।

निष्कर्ष

बेंगलुरु के इस ऑटो-रिक्शा चालक की कहानी सिर्फ एक वायरल सोशल मीडिया पोस्ट भर नहीं है, बल्कि यह मेहनत, लगन और इंसानियत का एक जिंदा उदाहरण है। IIM-B के छात्रों द्वारा दी गई जैकेट उनके समर्पण की सराहना का प्रतीक है, लेकिन इसके साथ ही यह कहानी समाज में मौजूद आर्थिक असमानताओं की ओर भी इशारा करती है।

यह हम सभी के लिए एक संदेश है कि चाहे कोई भी काम छोटा या बड़ा हो, हर व्यक्ति को उसकी मेहनत के अनुरूप सम्मान और उचित पारिश्रमिक मिलना चाहिए।

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