विवादों से घिरी फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ एक बार फिर देशभर में चर्चा का विषय बन चुकी है। फिल्म निर्माता अमित जानी, जो पहले भी कई विवादों के केंद्र में रह चुके हैं, इस फिल्म के जरिए फिर से सुर्खियों में हैं। इस फिल्म में 2022 में उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल तेली की हत्या की दर्दनाक घटना को दिखाया गया है। लेकिन इसकी रिलीज़ से पहले ही यह फिल्म राजनीतिक और धार्मिक विवादों में उलझ चुकी है।
आपत्तियाँ फिल्म पर और याचिकाएँ कोर्ट में
उदयपुर फाइल्स’ पर आम तौर पर विपक्षी दलों ने नूपुर शर्मा के बयान का उपयोग करके भारी प्रचार किया है। फिल्म के ट्रेलर में नूपुर शर्मा के बयान का उल्लेख है, जिसके इस्तेमाल से देशभर में सांप्रदायिक तनाव फैल गया था। इस पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात हाई कोर्ट में फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने की याचिकाएँ दायर कीं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
यहीं के साथ महाराष्ट्र विधानसभा में एसपी विधायक अबू आसिम आज़मी ने प्रतिबंध के लिए यह मांग करते हुए कहा कि इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हो सकती है।
अमित जानी कौन है?
अमित जानी, ‘उदयपुर फाइल्स’ के निर्माता, विवादों के लिए कोई नया नाम नहीं हैं। मेरठ, उत्तर प्रदेश निवासी 44 वर्षीय जानी ने सबसे पहले 2012 में तब सुर्खियाँ बटोरीं जब उन्होंने लखनऊ के अम्बेडकर पार्क में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की मूर्ति को हथौड़े से नुकसान पहुँचाया। उनकी यह मांग थी कि सत्ता में आई समाजवादी पार्टी अपने चुनावी वादे के तहत मायावती की मूर्तियाँ हटाए।
उनका संगठन उत्तर प्रदेश नव निर्माण सेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की तर्ज पर ही बनाया गया था और क्षेत्रीय पहचान की राजनीति को आगे ले जाने का दावा करता था।
विवादों की ऐतिहासिक फेहरिस्त
अब तक अमित जानी के खिलाफ कई विवादित घटनाओं में एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। कुछ प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं:
2012: अजीत सिंह और राहुल गांधी को काले झंडे दिखाने का मामला।
2016: जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार और उमर खालिद को धमकी देने के मामले में गिरफ्तार। उनके पास से एक लोडेड गन और धमकी भरा पत्र बस में मिला था।
2017: कथित पाकिस्तान समर्थक छात्रों के विरोध में दिल्ली-देहरादून हाईवे पर कश्मीरी छात्रों के खिलाफ पोस्टर लगाना — “कश्मीरी राज्य छोड़ दें या अंजाम भुगतें”。
ताजमहल विवाद: ताजमहल की फोटो को भगवा झंडों से मॉडिफाई कर सोशल मीडिया पर शेयर करना, जिसके बाद गिरफ्तारी।
2019: पुलवामा हमले के बाद अपनी होटल में “कश्मीरियों को प्रवेश नहीं” का बोर्ड लगाना। बाद में OYO ने होटल को डीलिस्ट किया।
2019: यूपी में योगी बनाम मोदी के बैनर लगाकर बीजेपी के खिलाफ आंतरिक संघर्ष को उभारा।
उनके ऊपर दर्ज कुल मामलों की गिनती 14 है, जिनमें दहेज प्रताड़ना, लूट, धमकी, और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान जैसे मुख्य अपराध हैं।
उदयपुर हत्याकांड और फिल्म की कहानी
जून 2022 में, दर्जी कन्हैया लाल तेली को उसके दुकान पर दिनदहाड़े हत्या कर दिया गया था। नूपुर शर्मा के समर्थन में की गई सोशल मीडिया पोस्ट से कथित रूप से नाराज़ हमलावर मोहम्मद रियाज़ और घौस मोहम्मद नाम के दो हमलावरों ने इस हत्या को किया था। हत्या का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था और पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ गई थी।
Amit Jani ने बनाई गई फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ इसी घटना पर है। फिल्म में विजय राज मुख्य भूमिका में हैं और संगीत प्रसिद्ध गायक कैलाश खेर ने दिया है।
परिवार का समर्थन और बढ़ती सुरक्षा चिंताएँ
कन्हैया लाल का परिवार फिल्म का समर्थन कर रहा है। वे अमित जानी के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस, मंदिर यात्राओं और धार्मिक नेताओं से मुलाकातों में भी शामिल हुए हैं। लेकिन इसी बीच जानी को सोशल मीडिया पर हत्या की धमकियाँ भी मिल रही हैं। उन्होंने सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है।
राजनीतिक जुड़ाव और हिंदुत्व ब्रिगेड
अमित जानी का भी राजनीति से गहरा जुड़ाव रहा है। 2017 में उन्होंने शिवपाल यादव यूथ ब्रिगेड की शुरुआत की और 2019 में शिवपाल ने उन्हें उनकी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की युवा इकाई का अध्यक्ष बनाया। इसके अलावा उन्होंने हाल ही में ‘हिंदू एक्शन फोर्स’ नाम की संस्था भी शुरू की।
मुद्दों के अलावा, जानी समय-समय पर खुद को हिंदू राजनीति और राष्ट्रवाद से जोड़ते आए हैं। उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव में शंभूलाल रैगर के लिए टिकट की घोषणा की थी, जिसने राजसमंद में मुस्लिम मजदूर की हत्या कर वीडियो वायरल किया था।
निष्कर्ष: क्या ‘उदयपुर फाइल्स’ सिर्फ एक फिल्म है या राजनीतिक हथियार?
‘उदयपुर फाइल्स’ एक ऐसी फिल्म बन गई है जो समाज, राजनीति और कानून—तीनों क्षेत्रों में हलचल पैदा कर रही है। जहाँ एक ओर यह दर्जनों विवादों में घिरे निर्माता की छवि को फिर से सार्वजनिक मंच पर ले आई है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या ऐसी फिल्में न्याय की मांग हैं या समाज में और विभाजन पैदा करती है?
जैसे-जैसे फिल्म 11 जुलाई को रिलीज़ के नजदीक आ रही है, उसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव पर हम सभी की नज़रें टिकी हुई हैं।